इस क्रांतिकारी बदलाव के पीछे दो बड़ी तकनीकें हैं – Genome Embryo Screening और Polygenic IVF Risk Analysis। ये दोनों तकनीकें IVF प्रक्रिया में एम्ब्रियो (भ्रूण) की आनुवंशिक जांच करके यह पता लगाने में मदद करती हैं कि भविष्य में बच्चे को कोई आनुवंशिक बीमारी (Genetic Disorder) तो नहीं होगी, या किसी विशेष बीमारी का जोखिम कितना है।
इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे – IVF क्या है और एम्ब्रियो कैसे बनता है?, Genome Embryo Screening क्या है और यह कैसे काम करता है?, Polygenic Risk Score क्या होता है और इसका IVF से क्या संबंध है?, इसके फायदे, सीमाएं और नैतिक पहलू क्या हैं?, भविष्य में इसका महत्व क्या होगा?
चलिए शुरू करते हैं..
IVF (In Vitro Fertilization): माता-पिता बनने की आधुनिक राह
Genome Screening और Polygenic IVF को समझने से पहले IVF प्रक्रिया को समझना जरूरी है, क्योंकि यही इसका आधार है।
IVF क्या है?
IVF यानी In Vitro Fertilization का मतलब है – शरीर के बाहर, लैब में अंडाणु (Egg) और शुक्राणु (Sperm) को मिलाकर भ्रूण (Embryo) बनाना। फिर इस भ्रूण को महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है, ताकि प्राकृतिक रूप से गर्भधारण हो सके।
IVF प्रक्रिया के प्रमुख चरण:
1. ओव्यूलेशन स्टिमुलेशन (Egg Stimulation):
महिला को दवाइयों के जरिए अधिक अंडाणु विकसित करने के लिए उत्तेजित किया जाता है।
2. एग रिट्रीवल (Egg Retrieval):
अंडाणुओं को अल्ट्रासाउंड की मदद से अंडाशय से निकाला जाता है।
3. फर्टिलाइजेशन (Fertilization):
लैब में अंडाणु और शुक्राणु को मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है।
4. एम्ब्रियो कल्चर (Embryo Culture):
भ्रूण को कुछ दिनों तक लैब में विकसित किया जाता है।
5. एम्ब्रियो ट्रांसफर (Embryo Transfer):
स्वस्थ और मजबूत भ्रूण को गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है।
इसी स्टेज पर आजकल एक महत्वपूर्ण कदम और जोड़ा जा रहा है – Genome Embryo Screening, ताकि गर्भ में जाने से पहले ही भ्रूण की जेनेटिक जांच कर ली जाए।
यह भी पढ़ें: प्रेग्नेंसी टेस्ट कब और कैसे करें? (Kab Kare Pregnancy Test)
Genome Embryo Screening क्या है?
Genome Embryo Screening को आसान शब्दों में समझें तो इसका मतलब है – भ्रूण की आनुवंशिक जानकारी (Genetic Information) की जांच करना, ताकि यह पता लगाया जा सके कि उसमें कोई गंभीर जेनेटिक बीमारी तो नहीं है या कोई क्रोमोसोमल असामान्यता (Chromosomal Abnormality) तो नहीं है।
यह तकनीक IVF के दौरान तैयार हुए भ्रूण पर की जाती है, और इसका उद्देश्य होता है:
- आनुवंशिक बीमारियों को पहचानना
- गर्भपात (Miscarriage) का खतरा कम करना
- IVF की सफलता दर बढ़ाना
- स्वस्थ बच्चे के जन्म की संभावना बढ़ाना
यह भी पढ़ें: प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड (सोनोग्राफी) कब कब होता है?
Genome Screening कैसे की जाती है? (Step-by-Step Process)
1. Embryo Biopsy:
भ्रूण बनने के पांचवें या छठे दिन (Blastocyst Stage) पर, उससे कुछ कोशिकाएं बहुत सावधानी से निकाली जाती हैं।
2. DNA Extraction:
इन कोशिकाओं से DNA निकाला जाता है। DNA यानी आनुवंशिक सामग्री, जिसमें हमारे शरीर की पूरी “Genetic Code” होती है।
3. Genetic Analysis:
DNA को आधुनिक तकनीकों जैसे Next Generation Sequencing (NGS) से स्कैन किया जाता है। इससे पता चलता है कि भ्रूण में कितने क्रोमोसोम हैं, कहीं कोई असामान्यता तो नहीं है।
4. Report & Selection:
जांच के बाद पता चल जाता है कि कौन-सा भ्रूण स्वस्थ है और किसमें जोखिम है। IVF विशेषज्ञ फिर सबसे स्वस्थ भ्रूण को गर्भ में ट्रांसफर करने का निर्णय लेते हैं।
यह भी पढ़ें: स्पर्म काउंट टेस्ट: कब और क्यों करें? जानिए सही जानकारी
Genome Screening से क्या-क्या बीमारियाँ पता चल सकती हैं?
Genome Embryo Screening से सैकड़ों आनुवंशिक बीमारियों की पहचान संभव है, जैसे –
- डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome)
- टर्नर सिंड्रोम (Tuer Syndrome)
- सिस्टिक फायब्रोसिस (Cystic Fibrosis)
- थैलेसीमिया (Thalassemia)
- मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Muscular Dystrophy)
- हीमोफीलिया (Hemophilia)
इन बीमारियों का पता भ्रूण को गर्भ में ट्रांसफर करने से पहले ही लग जाता है, जिससे माता-पिता को स्वस्थ बच्चे के जन्म की गारंटी के करीब लाया जा सकता है।
यह भी पढ़ें: HCG प्रेगनेंसी टेस्ट क्या है? (HCG Test in Hindi)
Genome Embryo Screening के फायदे
1. गर्भपात का खतरा कम:
जब भ्रूण जेनेटिक रूप से स्वस्थ होता है, तो गर्भपात की संभावना काफी कम हो जाती है।
2. IVF सफलता दर बढ़ती है:
स्वस्थ भ्रूण ट्रांसफर करने से गर्भधारण के चांस कई गुना बढ़ जाते हैं।
3. आनुवंशिक बीमारियों से सुरक्षा:
माता-पिता में किसी बीमारी का इतिहास हो तो भी बच्चे को उससे बचाया जा सकता है।
4. भविष्य की स्वास्थ्य सुरक्षा:
बच्चे के जीवन में कई गंभीर बीमारियों के खतरे को पहले ही घटाया जा सकता है।
यह भी पढ़ें: गर्भधारण की सम्भावना बढ़ानेवाली आधुनिक तकनीक : ERA टेस्ट
Genome Screening की सीमाएं
- यह 100% गारंटी नहीं देता कि बच्चा पूरी तरह स्वस्थ होगा।
- कुछ बीमारियाँ बहुत जटिल होती हैं जिन्हें इस स्तर पर पहचानना कठिन होता है।
- प्रक्रिया महंगी हो सकती है।
- सभी देशों में यह कानूनी रूप से स्वीकृत नहीं है।
यह भी पढ़ें: टेस्ट ट्यूब बेबी क्या है? प्रक्रिया, खर्चा, फायदे और सक्सेस रेट
Polygenic Risk Score (PRS) क्या है?
अब बात करते हैं अगली पीढ़ी की तकनीक की – Polygenic Risk Score (PRS)।
जहाँ Genome Screening मुख्य रूप से एकल-जीन या क्रोमोसोम संबंधी बीमारियों पर ध्यान देता है, वहीं PRS का उद्देश्य है – कई जीनों के मिलेजुले प्रभाव से होने वाली बीमारियों के खतरे का पूर्वानुमान लगाना।
आसान शब्दों में –
हर बीमारी सिर्फ एक जीन से नहीं होती। कई बीमारियाँ सैकड़ों-हजारों जीनों के छोटे-छोटे बदलावों से मिलकर होती हैं। PRS इन्हीं बदलावों का विश्लेषण करता है और बताता है कि किसी भ्रूण को भविष्य में किसी बीमारी का कितना जोखिम (Risk) है।
यह भी पढ़ें: इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग और प्रेग्नेंसी: हर महिला को जानना जरूरी!
Polygenic IVF Risk कैसे काम करता है? (Step-by-Step)
1. Embryo Biopsy:
Genome Screening की तरह भ्रूण की कोशिकाएं निकाली जाती हैं।
2. DNA Sequencing:
पूरे जीनोम का विश्लेषण किया जाता है ताकि हजारों जीनों में मौजूद छोटे-छोटे बदलाव (Variants) पता चल सकें।
3. Data Analysis:
इन बदलावों को बड़े डाटा बेस से तुलना कर यह अनुमान लगाया जाता है कि भ्रूण को भविष्य में किन बीमारियों का कितना खतरा है।
4. Risk Scoring:
प्रत्येक भ्रूण को एक Polygenic Risk Score दिया जाता है। कम स्कोर का मतलब बीमारी का कम जोखिम और अधिक स्कोर का मतलब अधिक जोखिम।
5. Embryo Selection:
IVF विशेषज्ञ फिर उस भ्रूण को चुनते हैं जिसका PRS सबसे कम हो – यानी भविष्य में बीमारी का खतरा सबसे कम हो।
यह भी पढ़ें: एक्टोपिक प्रेगनेंसी (Ectopic Pregnancy): कारण, लक्षण
Polygenic Risk से कौन-कौन सी बीमारियाँ पता चल सकती हैं?
Polygenic Screening से कई जटिल बीमारियों का जोखिम आंका जा सकता है, जैसे –
• टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज
• हृदय रोग (Heart Disease)
• अल्ज़ाइमर (Alzheimer’s Disease)
• कुछ प्रकार के कैंसर
• ऑटिज्म और ADHD जैसी न्यूरोलॉजिकल स्थितियाँ
Polygenic IVF के फायदे
1. भविष्य की स्वास्थ्य योजना:
बच्चा जन्म से ही कई बीमारियों से सुरक्षित हो सकता है।
2. लाइफस्टाइल डिज़ीज़ से बचाव:
डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हार्ट प्रॉब्लम जैसी आम बीमारियों का खतरा कम हो सकता है।
3. स्वस्थ जीवनकाल में वृद्धि:
बेहतर जेनेटिक प्रोफाइल के कारण बच्चे का स्वास्थ्य और आयु दोनों बेहतर हो सकते हैं।
4. पर्सनलाइज़्ड हेल्थकेयर:
भविष्य में बच्चे की स्वास्थ्य योजना उसके जेनेट��क प्रोफाइल के हिसाब से बनाई जा सकती है।
यह भी पढ़ें: इनफर्टिलिटी क्या है? इनफर्टिलिटी समस्या में क्या करे?
Polygenic IVF की सीमाएं और चुनौतियाँ
• यह भविष्यवाणी है, गारंटी नहीं।
• लाइफस्टाइल और पर्यावरणीय फैक्टर भी बीमारियों में भूमिका निभाते हैं।
• कुछ लोगों के लिए यह तकनीक नैतिक रूप से संवेदनशील हो सकती है।
• फिलहाल यह बहुत महंगी और सीमित प्रयोगशालाओं में ही उपलब्ध है।
कौन से कपल्स इन तकनीकों से सबसे अधिक लाभ उठा सकते हैं?
1. जिनके परिवार में आनुवंशिक बीमारियों का इतिहास हो।
2. जिनके पिछले गर्भ बार-बार असफल हुए हों।
3. जिनकी उम्र अधिक हो और IVF करवा रहे हों।
4. जो स्वस्थ बच्चे के जन्म की संभावना को अधिकतम करना चाहते हों।
भविष्य की संभावनाएं
आने वाले वर्षों में Genome Screening और Polygenic IVF और भी सटीक और सुलभ हो जाएंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में:
IVF क्लिनिक में यह स्टैंडर्ड प्रक्रिया बन जाएगी।
आनुवंशिक बीमारियों का लगभग पूरी तरह से उन्मूलन संभव होगा।
हर बच्चे के लिए पर्सनलाइज़्ड हेल्थ प्लानिंग संभव होगी।
विशेषज्ञों की सलाह
हर दंपत्ति को IVF से पहले जेनेटिक काउंसलिंग लेनी चाहिए।
Genome Screening और Polygenic IVF के फायदे-नुकसान दोनों को समझकर ही निर्णय लेना चाहिए।
डॉक्टर से खुलकर सभी सवाल पूछें और पूरी जानकारी लेकर ही आगे बढ़ें।
यह भी पढ़ें: गर्भपात (Miscarriage) क्या है? कारण, लक्षण और बचाव के उपाय
निष्कर्ष -
Genome Embryo Screening और Polygenic IVF Risk तकनीकें आने वाले समय की रिप्रोडक्टिव हेल्थ ट्रीटमेंट में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली हैं। आज हम सिर्फ माता-पिता बनने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि हम आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।
जहाँ Genome Screening आनुवंशिक बीमारियों को पहचानने में मदद करता है, वहीं Polygenic IVF Risk भविष्य की बीमारियों के खतरे को कम करने में सहायक है। दोनों मिलकर एक ऐसा रास्ता तैयार करते हैं, जिससे “माता-पिता बनने” का सपना न सिर्फ पूरा होता है, बल्कि “स्वस्थ और सुरक्षित बच्चे” का सपना भी साकार होता है।


